कॉलेज की यादें – ‘College Ki Yaadein’ – poem by Shri Ashutosh Gaur
यह डिग्री भी लेलो ये नौकरी भी लेलो
भले छीन लो मुझसे USA का वीसा
मगर मुझको लौटा दो कॉलेज का कैंटीन
वो चाय का पानी वो तीखा समोसा
कॉलेज की सबसे पुरानी निशानी
वो चायवाला जिसे सारे कहते थे … जानी
वो जानी के हाथों की कत्टिंग चाय मीठी
वो चुपके से जर्नल में भेजी हुई चिट्टी
वो पढ़ तेहि चिठ्ठी उसका भडकना
वो चेहरे की लाली वो आँखों का गुस्सा…
कड़ी धुप में अपने घर से निकलना
वो प्रोजेक्ट की खातिर शहर भर भटकना
वो लेक्चर में दोस्तों के प्रोक्सी लगाना
वो सर को चिढाना, वो एरोप्लेन उड़ाना
वो सब्मिसन की रातों को जागना जगाना
वो ओरल्स की कहानी वो प्रक्टिकल का किस्सा …
बिमारी का डीटेनसन के टाइम बहाना
वो दूसरों के असाईंनमेंट को अपना बनाना
वो सेमिनार के दिन पैरों का छटपटाना
वो वोर्क्शोप में दिन रात पसीना बहाना
वो एक्सजाम के दिन का बेचैन माहौल
पर वो माँ का विश्वास – टीचर का भरोसा …
कॉलेज की वो लंबी सी रातें
वो दोस्तों से कैंटीन में प्यारी सी बातें
वो गेदरिंग के दिन का लड़ना झगडना
वो लड़कियों का युहीं हमेशा अकडना
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई
वो कॉलेज, वो बसें, वो शरारतें वो जवानी…
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी …
Poem by: Shri Ashutosh Gaur