छठ(Chhath) पूजा, भारत के सबसे प्राचीन त्योहारों में से एक है। यह बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मुख्य रूप से मनाया जाता है, छठ पूजा के अवसर पर आध्यात्मिक शक्ति के स्रोत, सूर्य देवता, की पूजा एवं अर्चना की जाती है।
2023 में छठ पूजा:
छठ पूजा चार दिनों तक मनाई जाती है, जिसमें मुख्य अनुष्ठान तीसरे दिन किए जाते हैं। 2023 में, छठ पूजा की शुरुआत शुक्रवार, 17 नवंबर को होगी, और मुख्य पूजा का दिन, जिसे “उषा अर्घ्य” के नाम से जाना जाता है, सोमवार, 20 नवंबर को पड़ेगा। इस दिन भक्तजन नदियों, तालाबों और जलाशयों के पास इकट्ठा होकर अस्त होते हुए सूर्य को अपनी प्रार्थनाएं अर्पित करेंगे।
छठ पूजा की ऐतिहासिक जड़ें:
छठ पूजा हिंदू धर्म के सबसे पुराने त्योहारों में से एक माना जाता है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। माना जाता है कि छठ पूजा 2,000 वर्षों से अधिक समय से मनाई जा रही है। “छठ” शब्द संस्कृत के “षष्ठी” शब्द से आया है, जिसका अर्थ होता है छठा दिन, यह संकेत करता है कि यह त्योहार दीपावली के बाद चंद्र माह के छठे दिन मनाया जाता है।
सूर्य देव की पूजा:
छठ पूजा, सूर्य देव की पूजा के लिए समर्पित है। सूर्य को जीवन और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है, और भक्त अपने परिवारों के कुशलता के लिए आशीर्वाद पाने के लिए प्रार्थनाएँ करते हैं।
फसल त्योहार:
छठ पूजा का महत्व एक फसल त्योहार के रूप में भी होता है। यह त्योहार फसल काटने के बाद के मौसम में मनाया जाता है किसान सूर्य देवता से समृद्ध फसल के लिए एवं अपनी भूमि की उर्वरता के लिए प्रार्थना करते हैं।
आध्यात्मिक महत्व:
छठ पूजा को एक आध्यात्मिक रूप से शुद्धिकरण त्योहार के रूप में माना जाता है। भक्त कठोर उपवास करते हैं और सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य को अपनी प्रार्थनाएं अर्पित करते हैं। माना जाता है कि यह मन और शरीर को शुद्ध करता है और समृद्धि लाता है।
सामुदायिक संबंध:
छठ पूजा एक समुदाय-प्रेरित त्योहार है, जो एकता और सामाजिक संबंधों पर जोर देता है। परिवार और पड़ोस एक साथ आते हैं अनुष्ठान करने के लिए और सामूहिक प्रार्थनाएं अर्पित करते हैं।
छठ अनुष्ठानों का महत्व:
नहाय खाय: पहले दिन भक्त पवित्र नदी या तालाब में स्नान करते हैं, उसके बाद लौकी और अरवा (चावल) का भोजन करते हैं।
खरना: दूसरे दिन, भक्त सख्त उपवास रखते हैं, और शाम को वे गुड़ और चावल से बनी खीर ग्रहण करते है।
संध्या अर्घ्य: तीसरा दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है। भक्त सूर्यास्त से पहले नदी के किनारे पर इकट्ठा होते हैं और डूबते सूर्य को ‘अर्घ्य’ अर्पित करते हैं। इस अनुष्ठान के बाद वे अपना उपवास तोड़ते हैं।
उषा अर्घ्य: अंतिम दिन, सूर्योदय के समय उगते सूर्य को ‘अर्घ्य’ अर्पित करते हैं और ‘अर्घ्य’ अर्पण का अनुष्ठान किया जाता है।